साक्ष्य के अभाव में छेड़खानी के आरोपी को कोर्ट ने किया बरी,
अधिवक्ता मयंक मिश्रा के मजबूत सबूतों के आधार पर कोर्ट ने 354 IPC पाक्सो एक्ट के आरोपी को छोड़ने का लिया फैसला,
आदमपुर निवासी 17 वर्षीय युवती ने आरोप लगाया था की अर्जुन श्रीवास्तव नामक युवक ने उसको छत पर बुलाकर उसके साथ छेड़खानी की थी और थाने में तहरीर दिया था इस आधार पर आदमपुर पुलिस ने अर्जुन श्रीवास्तव के ऊपर धारा 354 ipc पाक्सो एक्ट का आरोप लगाकर कोर्ट में प्रेषित किया था जिसके फलस्वरूप अधिवक्ता मयंक मिश्रा ने आरोपी की तरफ से केस लड़ा और मजबूत सबूतों को प्रस्तुत कर फैसला आरोपी के पक्ष मे करवाया, पाॅक्सो के अभियुक्त को मिला संदेह लाभ, विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट अनुतोष कुमार शर्मा ने किया बरी,राज्य –बनाम –अर्जुन श्रीवास्तव वर्तमान व स्थायी पता दुल्ली गढ़ही, कोतवाली, वाराणसी। अपराध संख्या-167 सन् 2016 धारा-354, 354क भादसं. व धारा-7/8 लैंगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम। थाना-आदमपुर, जिला वाराणसी। अभियोजन पक्ष के कथनानुसार, वादिनी ने बताया कि अन्तर्गत थाना आदमपुर, वाराणसी की रहने वाली हूं।
जिसमें दिनांक-18.09.2016 रात्रि 1.00 बजे मेरी पुत्री उम्र 17 वर्ष गली में खड़ी होकर आरकेस्ट्रा देख रही थी कि मोहल्ले के अर्जुन श्रीवास्तव पुत्र स्व0 ओम प्रकाश श्रीवास्तव निवासी दुल्हीगड़ही थाना कोतवाली, वाराणसी ने मेरी पुत्री से अपने घर के छत से आरकेस्ट्रा दिखाने के बहाने अपने घर ले जाकर उसकेसाथ अश्लील हरकत करने लगा तथा बुरा काम करने की मागं कर रहा था मेरी पुत्री ने मुझसे आकर पूरी बात बतायी।
वादिनी द्वारा दी गयी सूचना के आधार पर थाना आदमपुर, वाराणसी पर मुकदमा अपराध संख्या -167/2016 धारा-354, 354क भादसं. व धारा-7/8 लैंगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम में अभियुक्त अर्जुन श्रीवास्तव के विरूद्ध अन्तर्गत धारा-354क भा0द0सं0 व धारा-7/8 पाॅक्सो एक्ट दर्ज हुआ। दौरान विवेचना दिनांक-18.09.2016 को अभियुक्त की गिरफ्तारी की गयी। विवेचक द्वारा दौरान जांच पीड़िता का बयान दर्ज कराया व पीड़िता का मेडिकल कराया तथा विवेचक ने साक्षीगण का बयान अंकित किया। जिसमें अभियुक्त जमानत कराकर बाहर है पीड़िता ने बताया कि अर्जुन मुझे लेकर छत पर गया, वहां पर मैने वो प्रोग्राम देखा तभी अर्जुन भइया बोले कि नीचे जाओ तुम्हारी दीदी भइया नीचे आ गया फोन आया है। पहले मैने मना किया फिर वो दबाव बनाने कि जाओ नीचे दरवाजा खोल दो। मै नीचे गयी दरवाजा खोला तो देखा कोई नहीं था, तभी पीछे से अर्जुन भइया आ गये तथा दरवाजा बन्द कर दिये और मुझे कस के पकड़ लिया और मेरे साथ अश्लील हरकत करने लगे तब मै चिल्लाई तो मेरे मुहं में कपड़ा ठूंस दिये,
मैने उनको लात मारी और हाथ छुडा़ कर ऊपर भागी वहां छत पर एक भइया थे, उनको बोला कि नीचे मेर साथ चलकर घर का पल्ला खोल दीजिये मुझे बाहर जाना है तब उन्होने दरवाजा खोला इतने में अर्जुन छत पर आ गया था।
मै फिर अपनी मां के पास चली गयी और सबको फिर घटना बतायी।’’ जिसमें न्यायालय के द्वारा विद्वान विशेष लोक अभियोजक व बचाव-पक्ष के विद्वान अधिवक्ता मयंक मिश्रा, रविषंकर राय व दिलीप कुमार को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। अभियोजन की ओर से परीक्षित साक्षी माता पीड़िता ने अपने बयान में यह कथन किया है कि मेरे तीन लड़की एक लड़का है। मै पढी लिखी नही हूं। मेरी छोटी वाली लड़की के साथ घटना घटी थी। घटना की तारीख, सन् महीना मुझे याद नहीं है। घटना आज से कितने साल पहले घटी थी, याद नहीं है। जिस समय घटना घटी थी, उस समय विश्वकर्मा पूजा का समय था। घटना के समय मेरी लडकी सरकारी स्कलू में पीली कोठी में पढती थी। घटना रात लगभग 1.00 बजे की है। उस समय मेरी लड़की आर्केस्ट्रा देखने गयी थी। मेरी लड़की के साथ आर्केस्ट्रा देखने के दौरान छेड़खानी हुआ था तो मेरी लडकी ने आकर मुझसे बताया कि मम्मी मेरे साथ छेड़खानी हुआ है और मुहल्ले वाले के बताने के आधार पर थाने जाकर घटना की सूचना दिया था तो दरोगा जी ने हमारा अंगूठा का निशान थाने पर लिया था। हमने दरोगाजी को घटना के विषय में नहीं बताया था।
हमारी बड़ी लड़की जाकर दरोगा जी को घटना के विषय में बताया था। बचावपक्ष के विद्वान अधिवक्ता का प्रथम तर्क यह थे कि अभियोजन पक्ष अपने साक्ष्य से पीड़िता का अवयस्क होना सिद्ध नही कर सका है। इसके विपरीत विद्वान विशेष लोक अभियोजक के द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि पत्रावली पर विद्यमान पीड़िता के विद्यालय के जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर पीड़िता का घटना के समय अवयस्क होना सिद्ध है।
साथ ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये विधि व्यवस्था का भी प्रमाण प्रस्तुत किया गया। वहीं बचावपक्ष के विद्वान अधिवक्ता का अगला तर्क यह प्रस्तुत किया गया कि वादिनी व घटना की पीड़िता के द्वारा अभियोजन कथानक का समर्थन नही किया गया है, इससे अभियोजन कथानक सिद्ध नही है। इसके विपरीत विद्वान विशेष लोक अभियोजक के द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों से अभियुक्त दोष सिद्ध किये जाने योग्य है। पीड़िता के द्वारा अपनी मुख्य परीक्षा में कथन किये गये है कि-’’घटना की तारीख मुझे मालूम नही है। घटना के समय गर्मी का मौसम था। घटना सन् 2016 की है। घटना के समय मै विद्यालय, वाराणसी में पढ़ रही थी। मुझे अपनी जन्मतिथि मालूम नही है। स्कूल में हमारी जन्मतिथि 05.07.1999 लिखी है, वह सही लिखी है। घटना के समय मै आर्केस्ट्रा देखने गयी थी। मेरे पड़ोसी अर्जुन श्रीवास्तव के कहने पर मै छत पर आर्केस्ट्रा देखने गयी थी। छत पर आर्केस्ट्रा देखते समय मै और अर्जुन श्रीवास्तव और दो लड़के और चार औरते थी। मुझसे किसी ने कहा कि तुम्हारी दीदी का फोन आया है तो मै नीचे गयी तो वहां पर कोई नही था। वहां पर पीछे से मुझे किसी ने पकड़ लिया और अंधेरा होने के कारण मै नही देख पायी कि कौन था। वहीं बचाव पक्ष की ओर से न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुये कहा गया कि घटना की एक मात्र चक्षुदर्शी साक्षी व पीड़िता के द्वारा कथन किये गये कि अंधेरा होने के कारण वह देख नही सकी कि किसके द्वारा घटना कारित की गयी।इस साक्षी के द्वारा यह भी कथन किये गये कि पुलिस व 164 द.प्र.स. के बयान उसके घर वालो के कहने पर दिया गया तथा यह कहना गलत है कि अभियुक्त अर्जुन श्रीवास्तव के द्वारा उसके साथ घटना कारित की गयी। इस प्रकार पीड़िता के द्वारा अभियोजन कथानक का समर्थन नहीं किया गया।
वहीं न्यायालय के द्वारा दोनो पक्षों को तर्क सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि अभियुक्त अर्जुन श्रीवास्तव को धारा-354, 354क भादसं. व धारा-7/8 लैंगिंक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम के आरोप से संदेह का लाभ देते हुये दोषमुक्त किया जाता है। अभियुक्त जमानत पर है। उसके जमानतनामे निरस्त किये जाते हैं व प्रतिभूगण को उनके दायित्वों से उन्मोचित किया जाता है। साथ ही अभियुक्त को निर्देशित किया जाता है कि वह धारा-437क द.प्र.सं. के प्रकाश में 15 दिवस के अन्दर पचास हजार रूपये की दो जमानते व इसी धनराशि का व्यक्तिगत मुचलका इस अण्डर टेकिंग के साथ दाखिल करे कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा तलब किये जाने पर माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष उपस्थित होगा। वहीं बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्तागणों में मयंक मिश्रा ऐडवोकेट वर्तमान प्रशासन मंत्री bba ने पक्ष रखा,