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Home›सुर्खियां›दम मारो दम के चक्कर में बर्बादी की राह पर भारतीय युवा पीढ़ी, अरशद आलम (पत्रकार)

दम मारो दम के चक्कर में बर्बादी की राह पर भारतीय युवा पीढ़ी, अरशद आलम (पत्रकार)

By Manish Srivastava
June 14, 2021
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दम मारो दम के चक्कर में बर्बादी की राह पर भारतीय युवा पीढ़ी,
अरशद आलम (पत्रकार)

 

भारत दुनिया का सबसे युवा देश माना जाता हैं, जी हां, दुनियाभर में सबसे ज्यादा युवा भारत में निवास करते हैं। युवाओं के बलबूते भारत 2025 तक दुनिया की ‘आर्थिक महाशक्ति ’ बनना चाहता है, मगर देश के युवाओं में जिस गति से सूचना प्रौद्योगिकी का चलन बढ़ रहा है, उसी गति से बेरोजगारी और तनाव भी उनके बीच पैर पसार रहा है, इनके बीच का एक बहुत बड़ा तबका नशे की गिरफ्तर में आता जा रहा है,

पुलिस-प्रशासन, अध्यापक, अभिभावक और समाजवैज्ञानिक इस बात से हैरान हैं कि भारत के युवाओं में नशे का चलन दिन-प्रति-दिन इतना बढ़ क्यों रहा है ? अफीम, गांजा, चरस, स्मैक, हेरोइन, कोकीन, एफेड्राइन, मिथाइलिन, डाइऑक्सी मेथाम्पेटामाइन, रॉहिप्नॉल और एलएसडी जैसी खतरनाक ड्रग्स युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर रही हैं, जिस तरह से समाज का एक बड़ा युवावर्ग नशे की गिरफ्त में आता जा रहा है, उससे आने वाले वक्त में देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे को चौपट कर सकता है,

नशा अब मौजमस्ती और तनाव दूर करने की आदत नहीं रहा, बल्कि यह हमारी युवा पीढ़ी की ‘आवश्यकता’ बनना जा रहा है, दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित पंजाब, उत्तर पूर्व, मुंबई और बंगलूरू नशे के नए केंद्र बन रहे हैं, खतरनाक बात यह है कि प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों और होटलों तक में नशे के सौदागरों ने अपनी पकड़ कायम कर ली है, भारत के लिए नशे का सामान सप्लाइ करने वाले प्रमुख देश चीन है, तमाम सोशल साइट के जरिए युवा कोड वर्ड में ड्रग्स मंगवाते हैं, जो नेटवर्किंग साइट्स के जरिए मांग करने वालों के पास भेज दी जाती है, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और दिल्ली में ड्रग्स का धंधा करने वालों का एक बहुत बड़ा सिंडिकेट है, जो देर रात शुरू होने वाली पार्टियों में ड्रग्स सप्लाई करता है, दिल्ली के हर बड़े अस्पताल में रोज पांच-छह ऐसे मामले आ रहे हैं, जो ड्रग्स से जुड़े लोगों की बीमारियों के बारे में होते हैं, इन मामलों में १५ से लेकर ३५ साल तक के युवाओं को लेकर उनके अभिभावक डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं, नशा व्यक्ति को भ्रम की एक ऐसी दुनिया में ले जाता है, जहां से उसका निकलना मुश्किल हो जाता है, कभी-कभी नशा की ज्यादा मात्रा लेने से व्यक्ति हिंसक भी हो जाता है,

पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल, चीन और नाइजीरिया से नशे का सामान गैरकानूनी ढंग से दिल्ली तक पहुंचता है। देश के उत्तर पूर्वी राज्यों से नशे का सामान ट्रकों के जरिए देश के दूसरे हिस्से में पहुंचाया जाता है, भारत, नेपाल, मोरक्को और अफगानिस्तान अफीम के गढ़ हैं,

पंजाब नशे का सबसे बड़ा और संवेदनशील गढ़ है, इसे देखते हुए युवाओं को नशे से विमुख करने के लिए अकाल तख्त की सिख संगत ने पहल शुरू की है। पंजाब के युवा कभी मेहनती, सेहतमंद, हरफनमौला, खुशमिजाज माने जाते थे लेकिन आज राज्य का हर चौथा नौजवान किसी न किसी तरह के नशे की गिरफ्त में है, राज्य में हर साल एक हजार करोड़ रुपयों का ड्रग्स का धंधा होता है। पंजाब ड्रग्स तस्करों का स्वर्ग साबित हो रहा है, नारकोटिक्स ब्यूरो की निगाह पंजाब के सीमावर्ती गांवों पर टिकी हुई हैं जहां से तस्करी के जरिए हेरोइन पंजाब में दाखिल होती है, पाकिस्तान के रास्ते भारत में हेरोइन का पैकेज भेजने के लिए सीमावर्ती किसानों को एक लाख से पचास हजार रुपये तक मिल जाते हैं, पुलिस और नारकोटिक्स विभाग का कहना है कि पंजाब में पाकिस्तान की सीमा से लगे किसान अघोषित तौर पर कोरियर का काम करते हैं,

भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहां कानूनन अफीम का उत्पादन होता है। कानूनी तौर पर यहां अफीम का इस्तेमाल दवाइयां बनाने आदि में होता है लेकिन सच्चाई यह है कि इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा गैरकानूनी तरीके से नशे का धंधा करने वालों के हाथ में पहुंच जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा ९२ फीसदी अफीम अफगानिस्तान में पैदा होती है, जहां से तस्करों के जरिए इसे दुनियाभर में भेजा जाता है। अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर मादक पदार्थ बहुत सस्ती कीमत में मिलते हैं, जहां से उन्हें एशिया और यूरोप में पहुंचाया जाता है,

अफगानिस्तान में अफीम से हेरोइन बनाने के पांच सौ से ज्यादा कारखाने बताये जाते हैं, जहां हर साल चार लाख टन हेरोइन का उत्पादन होता है, जिसका दुनिया के तीन करोड़ नशेबाज सेवन करते हैं, अफगानिस्तान में अफीम की खेती की रोकथाम के लिए रूस ने उस वक्त पहल की थी जब उसकी सेनाओं का वहां आधिपत्य था, उस दौरान रूस ने अफगनिस्तान में अफीम की खेती रोकने के लिए ‘रादुगा-२’ परियोजना लागू की थी जिसके तहत किसानों को वैकल्पिक खेती की तरफ मोड़ना था लेकिन रूस की यह परियोजना परवान नहीं चढ़ सकी,

सरकारी तंत्र अगर नशे के नेटवर्क को ध्वस्त करने में लगा है तो नशे के कारोबारी भी नए-नए तौर तरीके अपना रहे हैं। गंधहीन और स्वादहीन नशे की गोलियां जैसे केटामाइन, एसिटिक एनहाइड्राइड, मेंथामेफेटामाइन, बार्विचुरेट, एफेड्रीन और जीएचबी के निर्माण की लिए देश में ही फैक्ट्रियां संचालित हो रही है, छोटी-छोटी पुड़ियों से लेकर बड़े-बड़े पैकेटों में इन नशीले पदार्थों की खेप देश में इधर से उधर भेजी जाती है। आजकल कोरियर के माध्यम से यह काम बहुत आसानी से किया जा रहा है, किसी उपहार, सामान, कागजात या किताबों में छिपाकर इन घातक नशीली दवाओं को भेजा जाता है, इंटरनेट पर नशेबाजों ने बहुत-सी सोसायटियों का गठन कर रखा है जो इनके माध्यम से नशे का सामान मंगाते हैं,

नशेबाजों की रेव पार्टियों में घातक केटामाइन ड्रग्स पहली पसंद हैं इसका सेवन करने वाला अपनी सुध-बुध खो बैठता है, उसकी दिमागी हालत खराब हो जाती है। इसका सेवन करने वाला पक्षाघात का शिकार हो सकता है,

अंतरराष्ट्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट कहती है कि ‘दुनियाभर में मादक पदार्थों पर रोकथाम इसलिए नहीं लग पा रही है, क्योंकि कहीं न कहीं जांच एजेंसियों और नियंत्रण करने वाली संस्थाओं में भ्रष्टाचार पनप रहा है।’ रिपोर्ट कहती है कि विश्व में हर साल ढाई लाख लोग मादक पदार्थों के सेवन की वजह से अकाल मौत के शिकार होते हैं, जानकार कहते हैं कि दुनियाभर में नशे का कारोबार साठ के दशक के दौरान उस वक्त ज्यादा बढ़ा जब आधुनिकता की दौड़ में यूरोपीय देशों के युवाओं ने ‘हिप्पी कल्चर’ को आत्मसात करना शुरू किया,

नारकोटिक्स विभाग का कहना है कि पूर्वोत्तर में नशीले पदार्थों की सबसे बड़ी खेप म्यांमार से ही आती है। म्यांमार से भारत नशीले पदार्थों की खेप तामु से चलती है जो मणिपुर के छोटे शहर मोरे पहुंचती है, वहां से इंफाल और कोहिमा होते हुए यह ड्रग्स दीमापुर पहुंचती है। पूर्वोत्तर में सबसे ज्यादा ड्रग्स की तस्करी दीमापुर, मणिपुर और नागालैंड के रास्ते से होती है। भारत म्यांमार व्यापारिक समझौते के तहत जब से भारत में ‘मोरे सीमा’ को व्यापार के लिए खोला गया है तब से इस क्षेत्र में नशीले पदार्थों की तस्करी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। बीते दिनों इस इलाके से नारकोटिक्स विभाग ने २५ करोड़ के ड्रग्स के साथ सेना के एक बड़े अधिकारी को दबोचा था। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में 10 लाख लोग हेरोइन का सेवन करते हैं, जबकि कई गैर-सरकारी संस्थाएं इस आंकड़े को ५० लाख से ऊपर मानती है,

देश के ग्रामीण इलाकों में गांजे का सेवन सबसे ज्यादा किया जाता है। पांच रुपये से लेकर बीस रुपये तक में गांजे की एक पुड़िया मिल जाती है। शहरों में हेरोइन, स्मैक और कोकीन का नशा किया जाता है जबकि दिल्ली, बंगलूरू, चेन्नै, मुंबई, कोलकाता, गुड़गांव, नोएडा, इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में युवा इंजेक्शन से लेकर सिंथेटिक गोलियों का सेवन कर रहे हैं। पबों और पांच सितारा होटलों में भी विदेशी सिंथेटिक नशे का इस्तेमाल बढ़ रहा है। इस तरह के नशीले पदार्थों को घातक रसायनों के मिश्रण से तैयार किया जाता है। एक नन्ही-सी गोली बीस हजार रुपये में मिलती है,

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