भारतीय ज्ञान तंत्र का दर्शन यदि विश्व के किसी भी राष्ट्राध्यक्ष को कराना है तो उसके लिए बीएचयू से बेहतर कोई और दूसरा स्थान नहीं हो सकता है : प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह
बीएचयू के कुलपति का जो सम्मान है, वह दुनिया के किसी और विश्वविद्यालय के कुलपति का नहीं है : प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह
वाराणसी। बीएचयू के कुलपति का जो सम्मान है, वह दुनिया के किसी और विश्वविद्यालय के कुलपति का नहीं है । बीएचयू के अलावा दो और विश्वविद्यालयों का कुलपति रहते हुए देश दुनिया की यात्रा के दौरान मेरे अनुभव विशिष्ट व बेहद चौंकाने वाले रहे। कुलपति के पद का सम्मान आज भी उस पद पर बैठने वाले व्यक्ति को लेकर नहीं बल्कि बीएचयू के संस्थापक भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को लेकर है । भावुक कर देने वाले ऐसे अनुभवों के दौरान मैंने पाया कि लोग इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति में भी महामना और उनके आदर्शों का दर्शन व उनके प्रति अगाध श्रद्धा प्रकट करते हैं । ये बातें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के 105 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित ‘स्थापना व्याख्यान ऋंखला 2021’ में विश्वविद्यालय की स्थापना दिवस पर बतौर मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन व बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह ने कही।
उन्होंने 1905 में महामना द्वारा विश्वविद्यालय की प्रस्तावना में दर्ज कुछ बातों का जिक्र करते कहा कि “व्यक्ति और समाज की उन्नति के लिए बौद्धिक विकास से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है चारित्रिक विकास। मात्र औद्योगिक प्रगति से ही कोई देश खुशहाल, समृद्ध और गौरवशाली राष्ट्र नहीं बन जाता। अतः युवाओं का चरित्र निर्माण करना प्रस्तावित विश्वविद्यालय का एक प्रमुख लक्ष्य होगा। उच्च शिक्षा द्वारा यहाँ केवल अभियंता, चिकित्सक, विधि-वेत्ता, वैज्ञानिक, शास्त्रज्ञ विद्वान ही नहीं तैयार कियें जाएँगे, वरन् ऐसे व्यक्तियों का निर्माण किया जाएगा जिनका चरित्र उज्ज्वल हो, जो कर्त्तव्य परायण और मूल्यनिष्ठ हों। यह विश्वविद्यालय केवल अर्जित ज्ञान के स्तर को प्रामाणित कर डिग्रियां देने वाली संस्था न होकर सुयोग्य सच्चरित्र नागरिकों की पौधशाला होगा।”
प्रो सिंह ने महामना को नमन करते हुए अपने उद्बोधन में वसंत पंचमी और विश्वविद्यालय स्थापना दिवस की बधाइयां देते हुए कहा कि सर्व विद्या की राजधानी कहा जाने वाला बीएचयू आज पूरे विश्व में ज्ञान की ज्योति फैला रहा है । 29 जुलाई 2020 को पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आप उसमें महामना के मूल्यानुगत दृष्टि की छाप स्पष्ट देख सकते हैं । राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुविषयक अध्ययन, समग्र शिक्षा और व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास पर जोर दिया गया है, जो महामना की संकल्पना और दृष्टि का परिचायक है। मानवीय मूल्यों के विकास और चरित्र निर्माण में मालवीय मूल्यबोधों का प्रभाव देखा जा सकता है। विद्यार्थियों के लिए संस्कार युक्त शिक्षा और मानवीय मूल्यधर्मिता के उन्नयन में परिसर की गतिविधियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । इसका प्रभाव ताउम्र उनके व्यक्तिगत जीवन से लेकर सामाजिक जीवन तक में स्पष्ट परिलक्षित होता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मुख्य लक्ष्य भारत को विश्व में ज्ञान की महाशक्ति बनाना है । इसके लिए हमें एक बड़े शिक्षण दायरे व शिक्षाकेंद्रित स्पष्ट दृष्टि की आवश्यकता होगी। हमें बड़े लक्ष्य रखने होंगे। नए भारत के निर्माण में शिक्षा के माध्यम से ही अलख जगाना होगा। आप देखें तो वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी प्राचीन श्रेष्ठ मूल्यों के साथ आधुनिक ज्ञान विज्ञान के समन्वय पर बल दिया गया है। इसमें अपनी जड़ों से जुड़े रहकर एक वैश्विक नागरिक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है जो कि प्रारंभ से ही बीएचयू का मुख्य उद्देश्य रहा है। भारतीय ज्ञान परंपरा में जो भी श्रेष्ठ है, उसे टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट के जरिए आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। प्रोफेसर सिंह ने बल देते हुए इस बात को कहा कि बीएचयू के पास संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय के रूप में ऐसा संकाय है जो दुनिया के किसी और विश्वविद्यालय के पास नहीं है । मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र, गांधीयन पीस सेंटर, वैदिक अध्ययन केंद्र, भारत अध्ययन केंद्र जैसी संस्थाएं पूरे विश्व में अहिंसा और शांति के लिए मार्गदर्शन का कार्य कर सकती हैं। भारतीय ज्ञान तंत्र का दर्शन यदि विश्व के किसी भी राष्ट्राध्यक्ष को कराना है तो उसके लिए बीएचयू से बेहतर कोई और दूसरा स्थान नहीं हो सकता है। आज स्थापना दिवस पर पुरातन और अध्ययनरत छात्रों के लिए अपने संदेश में उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय से किसी भी स्तर पर जुड़ना सौभाग्य की बात है परंतु व्यक्ति के जीवन और आचरण में यह सौभाग्य परिलक्षित भी होना चाहिए। इससे जुड़े लोगों को विश्वविद्यालय हित के लिए अपने स्तर पर सदा ही कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। विश्वविद्यालय से जुड़ाव बाहर निकल जाने के बाद ही नहीं दिखना चाहिए बल्कि परिसर के अंदर रहते हुए ही इसकी जड़ें मजबूत होनी चाहिए। दुनिया का यह एक इकलौता विश्वविद्यालय है, जिसे इसके आसपास के लोग भी अपना समझते हैं। इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर ने अपने स्वागत और शुभकामना संदेश में कहा कि विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के 106वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। महामना ने देश के युवाओं में चरित्र निर्माण के उद्देश्य से इसकी स्थापना की थी । इस विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा पद्धति में पठन-पाठन व शोध के क्षेत्र में नवाचार, नित नये अनुसंधान और आयामों जोड़कर युवाओं का उन्नयन और संपोषण किया जा रहा है । आज मालवीय जी के बताए मार्ग का अनुसरण करते हुए विश्वविद्यालय विश्व के अग्रणी संस्थानों में शामिल होने की ओर अग्रसर है। इस अवसर पर पुरा छात्र प्रकोष्ठ की अध्यक्षा प्रो. सुशीला सिंह ने विश्वविद्यालय की निर्मिति व उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए अतिथियों का स्वागत किया। यूजीसी के चेयरमैन प्रोफेसर धीरेंद्र पाल सिंह का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए बीएचयू एलुमनाई कनेक्ट के समन्वयक व लेक्चर सीरीज के संयोजक डॉ. धीरेंद्र राय ने बीएचयू परिवार की ओर से कहा कि ‘यूजीसी अपनी अकादमिक आभा व मूल्यानुगत शैक्षणिक सदाचार के जरिए समूचे विश्व में अकादमिक वैभव, मानवीय मूल्य व प्रतिभा संवर्धन का प्रतिमान बने।’ उन्होने इस मौके पर बीएचयू के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर और अध्यक्षा प्रो. सुशीला सिंह का भी आभार व्यक्त किया। तकनीकी सहयोग हर्षित, चंद्राली, पंकज और रवि ने किया।