जामदानी साड़ी के अनछुए पहलुओं से पीर मोहम्मद ने कराया परिचित
बुनकर पीर मोहम्मद ने जामदानी साड़ी कुछ के अनछुए पहलुओं से कराया परिचित
महीने भर दो कारीगरों के लगातार मेहनत के बाद तैयार होता है मसलिन साड़ी
वाराणसी, बुधवार 28 जुलाई। भारत कला भवन एवं वस्त्र अभिकल्प केंद्र, दृश्य कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के शुभ अवसर पर आयोजित संवाद-संगोष्ठी- श्रृंखला का आयोजन किया गया। आयोजन की दूसरी कड़ी में बुधवार को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त उस्ताद बुनकर पीर मोहम्मद ने जामदानी साड़ी कुछ के अनछुए पहलुओं को भारत कला भवन की उपनिदेशक डॉ. जसमिंदर कौर के साथ साझा किया। इस चर्चा में उन्होंने बताया कि पारम्परिक रूप से सूती पर सूती धागों से बुनी जाने वाली जामदानी बनारस की अन्य ब्रोकेड वस्तुओं से बिलकुल भिन्न होती है। पुर्णतः कढवा तकनीक से बनने वाली इस साडी को पॉवर लूम पर बनाना संभव नहीं है। महीने भर दो कारीगरों के लगातार मेहनत के बाद तैयार होने वाली इस मसलिन साड़ी में प्रत्येक नमूने को हाथ से अलग अलग सिरकियो से बुना जाता है, जिसे यहाँ के बुनकर ‘दपंच’ की बुनाई कहते हैं। यह साड़ी पहनने में बेहद हलकी होती है। इस विधा से जुड़ी ऐसी ही अनेक महत्वपूर्ण जानकारियों को इस सत्र में उस्ताद बुनकर पीर मोहम्मद द्वारा बताया गया। समस्त कार्यक्रम भारत कला भवन के प्रदर्शनी कक्ष में कोरोना नियमों के अंतर्गत ही संपन्न किए गए। इस अवसर पर डॉ. आर. गणेशन, डॉ. प्रियंका चन्द्रा, दीपक भरथन अल्थुर, जय प्रकाश मौर्या, लक्ष्मी तिवारी इत्यादि उपस्थित थे I