बीएचयू के महामना सभागार में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन
बीएचयू के महामना सभागार में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का मुख्य विषय सतगुरु रविदास और उनका समय
वाराणसी। अनुसूचित जाति जनजाति छात्र कार्यक्रम आयोजन समिति कहिविवि एवं ब्रिटिश रविदासिया हेरिटेज फाउंडेशन इंग्लैंड के संयुक्त तत्वावधान में “सतगुरु रविदास और उनका समय” विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया गया। कार्यक्रम के आरंभ अतिथियों ने गुरु रविदास, बाबा साहब डॉ अम्बेडकर एवं महामना के प्रतीकों पर माल्यार्पण किया एवं छात्राओं ने बुद्ध वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम महामना सभागार, मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र बीएचयू में हुआ। प्रथम उद्घाटन सत्र के मुख्यातिथि न्यायमूर्ति डॉ. टी आर नवल ने कहा गुर रैदास जी का समय सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक विषमता का अंधकार युग था। गुरु रविदास ने इन सभी विषमताओं को खत्म कर समतामूलक समाज की स्थापना पर बल दिया। उन्होंने एक आदर्श राज्य और समानता पर आधारित जातिविहीन देश के निर्माण का संदेश दिया। मुख्य वक्ता चौथी राम यादव जी ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि आज गुरु रविदास जी को भारत से ज्यादा कनाडा और अमेरिका में सुना और जाना जाता है। रविदास जी को बनारस ने नही सुना मगर पंजाब और जालंधर के लोगो ने सुना। आज उन्हें विश्व मानव के रूप में दुनिया याद कर रही है। संगोष्ठी को ब्रिटिश रविदासिया हेरिटेज फाउंडेशन इंग्लैंड के चेयरमैन ओमप्रकाश बाघा, सचिव सतपाल, इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट की एडव्होकेट दीपिका चावड़ा, संत श्री सुखदेव जी महाराज ने भी संबोधित किया। विषय प्रवर्तन एवं अतिथियों का स्वागत प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार ने किया। अध्यक्षता डॉ. स्वराज सिंह ने की । संचालन प्रो. बृजेश अस्थावल तथा आभार ज्ञापन डॉ. रविन्द्र गौतम ने किया। द्वितीय अकादमिक सत्र में शोध पत्रों का वाचन करते हुए श्री राम अर्श जी ने कहा कि मुहम्मद गोरी के बाद उसके गुलामों ने भारत पर 84 साल तक शासन किया,सिकंदर लोदी ने संत रविदास जी और कबीरदास जी से संपर्क साधा था। 1528 में संत रविदास जी ब्रम्हलीन हो गए उस समय बाबर का शासन था।रविदास जी और कबीरदास जी आपस में दोस्त थे। डा. प्रदुम्न शाह ने अपने प्रस्तुति में कहा कि संतों को मोह माया से दूर रहना चाहिए।मनुष्य को सम्यक ज्ञान और सम्यक दर्शन तथा सम्यक आचरण का ध्यान रखना चाहिए।
डा. अमरजीत ने अपने शोध प्रस्तुति में कहा कि गुणहीन ब्राम्हण से अच्छा है की आप एक चांडाल के पैर को पूजिए।डा. स्वराज ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि एक राजा का कर्तव्य है की वह अपने प्रजा के साथ न्याय करे तथा एक विद्वान का कर्तव्य है कि वह अपने शोध पर ध्यान दे। मनुष्य को कम क्रोध मोह लोभ पर नियंत्रण करना चाहिए।विकास तीन प्रकार से संभव है पहला मानव संसाधन तथा दूसरा बौद्धिक संपदा संसाधन और तीसरा धन वह साधन है जिससे विकास संभव है।बिना गम के शहर और गांव को ही बिना गम का पुर अर्थात बेगमपुर कहा गया। कार्यक्रम में बीएचयू बहुजन इकाई के संरक्षक प्रोफ़े के एन सिंह (आईएमएस), प्रोफे जे पी सिंह (आईएमएस), डॉ आर के गौतम (आईआईटी), प्रोफे हरिशंकर (आईएमएस) आदि प्रोफ़ेसर भी मौजूद रहे। द्वितीय सत्र का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन शोध छात्र रवींद्र प्रकाश भारतीय ने किया।सभी को यह जानकारी दे दी गई कि दूसरे दिन की संगोष्ठी अपने नियोजित समय 11 बजे पूर्वाह्न से मदन मोहन मालवीय के अनुशीलन केंद्र स्थित महामना सभागार में आयोजित की जाएगी।16 फरवरी को आयोजित होने वाले संत रविदास जी की झांकी समता रथ की तैयारियां जोरो पर हैं।पूरे बनारस में यह विदित है कि सबसे पहले बीएचयू की झांकी ही विगत 40 वर्षों से सभी झांकियो का नेतृत्व करती रही है, इस बार भी इस ऐतिहासिक परंपरा का मान रखा जाएगा।